इस पुस्तक की रचना का आधार अन्तःपुर में 'हनुमान चालीसा' के गूढ़ अर्थों एवं अलौकिक अनुभूतियों का रहस्योद्घाटन है। इस पारलौकिक स्पंदन को लेखनी में समाहित करना अति दुष्कर होता अगर ये कार्य सिद्ध साधन निर्देशित न होता। अनिर्वचनीय, अलौकिक एवं अद्भुत आनंद से परिपूर्ण इस साधना यात्रा में हनुमद्प्रज्ञता साख्य भाव दर्शित तथा सम्पूर्ण समर्पण के आभिर्भावभूत लक्षित हुई। इसी विशिष्ट अवस्था की समग्रता का समावेश इस रचना में लेखनीवश समाहित है।
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